Mahakaleshwar Jyotirlinga – भस्म आरती के साथ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और उज्जैन घूमने की संपूर्ण जानकारी

 

Ujjain Tourist Places In Hindi

Key Highlights

उज्जैन के दर्शनीय स्थल

 

उज्जैन महाकाल मंदिर के बारे

जय महाकाल

Mahakaleshwar Jyotirlinga in Hindi – मध्य प्रदेश राज्य के अत्यंत पुराने, भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन को अवन्तिका, उज्जयनी और कनकश्रन्गा के नामो से भी जाना जाता है। क्षिप्रा नदी के किनारे बसा उज्जैन भारत के  सात पौराणिक प्रसिद्ध शहरों में प्रमुख स्थान रखता है। हर बारह साल में एक बार उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन होता है। इस महाकुंभ के अवसर पर देश-विदेश से करोड़ों श्रध्दालु भक्तजन, साधु-संत, महात्मा क्षिप्रा नदी में कुंभ स्नान करते हैं और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का पुण्य कमाते है। यहाँ गुरु सांदीपनी के आश्रम में भगवान श्री कृष्ण व बलराम विद्याप्राप्त करने हेतु आये थे। कृष्ण की एक पत्नी मित्रवृन्दा उज्जैन की ही राजकुमारी थी। उज्जयिनी इतिहास के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी और महाकवि कालिदास उनके दरबार के नवरत्नों में से एक थे।

 

महाकाल लोक

उज्‍जैन में महाकाल कॉरिडोर ‘महाकाल लोक’ का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा 11अक्‍टूबर 2022 को किया गया था। महाकाल काॅरिडोर की लंबाई 900 मीटर है। जो 350 कराेड़ की लागत में बना है। इस कॉरिडोर में सनातनता और आधुनिकता का अद्भुत संगम है। महाकाल लोक में 200 मूर्तियां बनाई गई है। भारत देश का पहला नाईट गार्डन भी महाकाल लोक में बनाया गया है। महाकाल कॉरिडोर में एक कमल तालाब भी बनाया गया है। महाकाल लोक पुरानी रुद्रसागर झील के पास है। रात में जब महाकाल कॉरिडोर में स्‍तम्‍भों और मूर्तियों के आसपास लाइट जलती है तो यहॉं का नजारा बहुत अद्भुत लगता है।

 

उज्जैन कैसे पहुँचे ?

हवाई सेवा द्वारा

उज्जैन से सबसे नजदीक इंदौर का अहिल्याबाई होलकर एयरपोर्ट है। देश के सभी प्रमुख शहरों से उज्जैन के लिए फ्लाईट्स है। इंदौर से उज्जैन 55 कि.मी. की दूरी पर है। एयरपोर्ट के बाहर से बस, कैब और किराए की टैक्सियों उज्जैन पहुँच सकते है

रेल्वे द्वारा

उज्जैन रेलवे का एक जंक्शन है और भारत के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा है। कई बड़े शहरों से उज्जैन के लिए डायरेक्ट ट्रेन चलती है। ट्रेन उज्जैन आने जाने का सबसे अच्छा माध्यम है।

बस , टैक्सी द्वारा

उज्जैन के लिए भारत के सभी राज्यों से राज्य परिवहन की सार्वजनिक बस और प्राइवेट नॉन AC और AC बस चलती है। उज्जैन भोपाल से 183 कि.मी.,  इंदौर से 55 कि.मी., ग्वालियर से 450 कि.मी. और अहमदाबाद से 400 कि.मी. दूरी पर स्थित है। इन शहरों से उज्जैन के लिए नियमित रूप से बसें  चलती है।

 

उज्जैन में रहने की व्यवस्था

उज्जैन में कई प्रकार के होटल उपलब्ध है।  रेलवे स्टेशन और मंदिर के पास धर्मशाला में सस्ते कमरे भी मिल जाते है। महाकालेश्वर मंदिर ट्रस्ट के भक्त निवास में 500 से लेकर 1200 रू. मूल्य तक के रूम  ऑनलाइन बुक कर सकते है। भक्त निवास महाकालेश्वर मंदिर को पास ही है। भक्तनिवास से मंदिर आना जाना बहुत आसान होता है।

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महाकालेश्वर की भस्म आरती

पूरे विश्व से लोग उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की भस्मार्ती को देखने आते है। भष्म आरती महाकाल बहुत विशेष आरती है, जो केवल महाकाल मंदिर में ही देखने को मिलती है। अगर आपने उज्जैन में भष्म आरती दर्शन नही किये तो आपकी यात्रा अपूर्ण है।

 

महाकाल भस्म आरती समय

भस्म आरती का समय सुबह 4 बजे है।

भस्म आरती के लिए पुरुषो को धोती और महिलाओ को साडी पहनना अनिवार्य है।

 

भस्म आरती बुकिंग कैसे करे

भस्म आरती में उपस्थित रहने के लिए टोकन (टिकट) एक दिन पहले लेना जरुरी होता है। टोकन दो प्रकार से प्राप्त कर सकते है।

 

  1. महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती काउंटर पर जाकर

भस्म आरती के टोकन सीमित होते है और यह पहले आओ और पहले पाओ वाले के आधार पर मिलता है। भस्म आरती के काउंटर पर सुबह 10.00 से 12.30 मध्य पहचान पत्र ( आधार कार्ड) दिखाकर भस्म आरती का फार्म लेना है। फॉर्म में सही सही जानकारी भरकर 11.30 से 2.30 के मध्य आधार कार्ड की फोटो कॉपी के साथ जमा करना है। अगर फार्म को स्वीकृत हो  जाता है, तो शाम 7 बजे के बाद मोबाइल पर SMS प्राप्त होता है। शाम को 7.30 से 10 बजे के SMS दिखाकर आप भस्म आरती का टोकन प्राप्त कर सकतें है। टोकन निशुल्क होता है।

 

  1. ऑनलाइन बुक करने की प्रक्रिया

महाकालेश्वर मंदिर के ट्रस्ट के वेब साईट पर आप भस्म आरती का टिकट एडवांस में बुक कर सकते है। उसके लिए 100 रु. का ऑनलाइन चार्ज लगता है। कम से कम एक महीने पहले  बुक करें।

आप महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती, भक्त निवास रूम बुकिंग और VIP दर्शन ऑनलाइन टिकट बुक करने के लिये नीचे दिये वेब साइट के लिंक पर क्लिक करे।

http://dic.mp.nic.in/ujjain/mahakal/default.aspx

वेब साईट ओपन होने के बाद मेन मेनू दिखेगा।

HOME                Bhasm Arati          Dhramshala      Paid Darshan Ticket

आपको Bhasm Arati पर क्लिक करना है। जिससे एक महीने का कैलेन्डर खुल जायेगा। जिसमे उपलब्ध टोकन (टिकट)  की संख्या दिखेगी। आप उस डेट पर क्लिक करें, जिस डेट पर भस्म आरती का बुकिंग करना चाहते है। आपके सामने एक फॉर्म खुल जायेगा, जिसमे आपको मुख्य आवेदन कर्ता  का नाम, मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी, एड्रेस आदि देना है। मुख्य आवेदन कर्ता का फोटो jpg / jpeg के फोर्मेट  में अपलोड करना है, फिर आगे के कॉलम में ID Proof No. देना है। उसके सामने आधार कार्ड को jpg / jpeg  फोर्मेट  में अपलोड करनी है। आगे फॉर्म में आपके साथ जाने वाले पारिवारिक सदस्य के नाम, मुख्य आवेदन कर्ता से रिलेशन  और ID Proof का नंबर और फोटो भी अपलोड करनी है। उसके बाद Permission Name में तीन मंडपम के नाम दिखेंगे।

Kartikey Mandapam

Ganpati Mandapam

Nandi Mandapam

 

जिस मंडपम से  आप भस्म आरती को देखना चाहते है। उस मंडपम का नाम सिलेक्ट करें। नंदी मंडप से देखने पर भस्म आरती बहुत अच्छी दिखती है। अब नंदी मंडपम सिलेक्ट करके Check Availability  पर क्लिक करना है। जिसमे उपलब्ध सीट की संख्या दिखायेगा। प्रति व्यक्ति 100 के अनुसार से टोटल मूल्य दिखेगा। आप Payment mode में डेबिट कार्ड ,क्रेडिट कार्ड , नेट बैंकिंग से पेमेंट पर सकते है। पूरी प्रक्रिया करने के भस्म आरती का प्रिंट आउट निकल कर संभल कर रख लीजिए।

इसी प्रकार  ऊपर दिये गए निर्देश के अनुसार VIP दर्शन का टिकट और रूम बुकिंग कर सकते है।

 

भस्मार्ती की भस्म को बनाने की विधि

मान्यता के अनुसार वर्षों पहले श्मशान भस्‍म से ही भगवान महाकाल की भस्‍म आरती होती थी, लेक‌िन अब यह परंपरा समाप्त हो चुकी है। महाकाल की भस्‍म आरती और श्रृंगार में कपिला गाय के गोबर से बने औषधियुक्त उपलों में शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़‌ियों को जलाकर बनाई भस्‍म का प्रयोग क‌िया जाता है। जलते हुए कंडे में जड़ीबूटी और कपूर-गूगल की पर्याप्त मात्रा डाली जाती है, जिससे यह भस्म ना सिर्फ सेहत की दृष्टि से उपयुक्त होती है, बल्कि स्वाद में भी लाजवाब हो जाती है। इसी लौकिक भस्म को महाकाल भगवान को अर्पित किया जाता है

भस्म तीन प्रकार की होती है श्रौत, स्मार्त और लौकिक। जब श्रुति की विधि से यज्ञ किया जाता है तो वह भस्म श्रौत है, जब स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है और कण्डे को जलाकर जो भस्म तैयार की जाती है, वह लौकिक भस्म कहलाती है।

 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

 

वर्षो पूर्व उज्जैन में शिव भक्त राजा चन्द्रसेन रहा करते थे। वे शास्त्रों में पारंगत थे। उनकी धार्मिक प्रवत्ति और व्यवहार के कारण भगवान शंकर जी के गण मणिभद्र जी उनके परम मित्र बन गए। राजा चंद्रसेन से प्रसन्न होकर मणिभद्र जी ने चिंतामणि नामक महामणि राजाजी को उपहार स्वरूप भेंट करी थी। वह मणि अत्यंत चमत्कारिक और दिव्य थी। उस मणि के दर्शन करने से ही लोगों के कई संकट दूर हो जाते थे। राजा चन्द्रसेन ने उस मणि को अपने गले में धारण कर लिया था। कुछ समय बाद चिंतामणि की ख्याति दूर दूर तक फैलने लगी। तब कई राजा उस मणि को पाने का सपना देखने लगे। उन सभी राजाओं ने अपनी अपनी सेना तैयार करके एक साथ उज्जैन पर आक्रमण कर दिया। उन राजाओं ने आक्रमण करके से उज्जैन के चारों द्वार खोल दिए। राजा चन्द्रसेन अत्यंत भयभीत हो गए। वे भगवान महाकाल जी के शरण में पहुंचे और उनकी भक्ति में लीन गए। इस घटनाक्रम के दौरान महाकाल के दर्शन के लिए एक विधवा स्त्री अपने पांच वर्ष के बालक के साथ आयी। उस बालक ने राजा चन्द्रसेन को शिव जी की पूजा और आराधना करते देखा। ऐसा देखकर वह बहुत आश्चर्यचकित हुआ। फिर बालक  और उसकी माता शिव जी की पूजा अर्चना अदि करके वहां से चले गए। उस बालक ने घर जाकर भगवन शिव की उसी विधि-विधान से पूजन करने का निर्णय किया और एक पत्थर लाकर एकांत में जाकर स्थापित कर दिया। उस बालक ने उस पत्थर को ही शिवलिंग मान लिया और पूरे विधि विधान से पूजा करने लगा। वह बालक पूरी तरह शिव भक्ति में मगन हो गया। उसकी माता ने कई बार उसे भोजन करने के लिए आवाज दी, पर उसे पता न चला तब उसकी माता स्वयं उसे बुलाने आयी। उसकी माता ने देखा कि वह बालक अपने नेत्र बंद करके उस शिवलिंग रूपी पत्थर के सामने बैठा है। माता ने बालक को उठाने की बहुत कोशिश की पर बालक टस से मस न हुआ तब माता ने  क्रोधित होकर उस पत्थर को उठा कर फेंक दिया और पूजन की सारी सामग्री को भी फेंक दिया। इस प्रकार से महादेव जी का अनादर देखकर बालक अत्यंत दुखी होकर रोने लगा और धरती पर गिरकर बेहोश हो गया ।

कुछ देर बाद जब बालक को होश आया तो उसने देखा कि वहाँ एक भव्य और दिव्य मंदिर प्रकट हो गया है। उस दिव्य मंदिर के भीतर बहुत ही सुन्दर शिवलिंग उपस्थित था। उस बालक की माता भी शिवलिंग को देखकर आश्चर्यचकित हो गई। उस बालक की माता ने जो पुष्प, माला और अन्य पूजन सामग्री फेंक दी थी, वह भी शिवलिंग पर सुशोभित है। वह भाव-विभोर हो कर शिवलिंग के सामने नत्मस्तक हो गयी। वह बालक जब शाम को घर आया तो उसका निवास स्थान सोने का हो गया था। बालक विधवा माता ने राजा चन्द्रसेन को सूचित किया। राजा चन्द्रसेन भी उस अद्भुत वृतांत को सुनकर आश्चर्यचकित हो गए। यह बात उस सभी राजाओं तक भी पहुँच गयी जिन्होंने उज्जैन पर आक्रमण किया था। वे सभी राजा भी आश्चर्यचकित हो उठे। उन्हें यह अहसास हुआ कि चन्द्रसेन राजा की चिंतामणि पाना संभव नहीं है। इस उज्जैन नगरी का बालक भी बड़ा शिवभक्त है। यदि हम आक्रमण करेंगे तो असफल होंगे और भगवान शिव भी रुष्ट हो जायेंगे। तब सभी राजाओ ने राजा चन्द्रसेन से मित्रता कर ली और उन सभी राजाओं ने भी भगवान शिव की पूजा-अर्चना करना शुरू कर दिया। तभी  वहां हनुमान जी प्रकट हो गए। हनुमान जी ने  कहा कि हे देह धारियों ! शिव भगवान जी के लिए आप सभी शरीरधारी से बड़कर कोई नहीं है। शिव जी की कृपा मिलने से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। जिस तरह इस बालक पर शिव जी ने कृपा की है सब पर करेंगे। यह बालक अंत में मोक्ष की प्राप्ति करेगा। इस बालक के यहाँ आठवीं पीढ़ी में नन्द उत्पन्न होंगे और उनका पुत्र नारायण होगें। वे साक्षात् भगवान कृष्ण होंगे। ऐसा कहकर बजरंगबली जी अन्तरध्यान हो गए। तत्पश्तात वे सभी राजा भी भाव-विभोर होकर वहां से अपने – अपने नगर को चले गये।  ऐसा कहा जाता है कि उज्जैन में महाकालेश्वर भगवान साक्षात विराजमान हैं।

 

उज्जैन के राजा महाकाल के दर्शन कैसे करे?

उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन – मंदिर में कैमरा और मोबाइल जाने की अनुमति है लेकिन बैग, थैला, लेडिज पर्स नही।  भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए जल, पुष्प, बेल पत्र और प्रसाद लेकर आप लाइन में लग जाइये। अगर आप लाइन में न लगकर VIP दर्शन करना चाहते है, तो आप VIP लाइन से भी दर्शन करने जा सकते है, लेकिन उसके लिए आपको 151 की रसीद कटवानी होगी। जब आप लाइन में लगे रहे तो मन ही मन मे जय महाकाल का जाप करते रहे। भगवान के दर्शन करने के लिए सिर्फ २-३ मिनिट का समय मिलता है। अपने मन को भटकने न दे ध्यान पूर्वक महाकाल ज्योतिर्लिंग का दर्शन करें। अब आप महाकाल ज्योतिर्लिंग पर दूध, जल, पुष्प, बेलपत्र आदि अर्पित कर सकते है। आप स्पेशल पूजा और अभिषेक भी करवा सकते है इसके लिए उसका चार्ज आपको देना होगा। महाकाल भगवान के दर्शन के बाद मंदिर के परिसर  अन्दर ही बने कई और मंदिरों के दर्शन अवश्य करें। कई बार हम अपने प्रसाद, पुष्प, जल आदि पंडित और पुलिस वालो के कहने पर बाहर ही चढ़ा देते है। आप ऐसा न करें, उन्हें शिवलिंग पर ही चढ़ाएं।

 

महाकालेश्वर उज्जैन दर्शन का समय 2023

Mahakaleshwar Mandir Timing 

यह मंदिर प्रतिदिन प्रातः काल 4:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है

सावन महीने में मंदिर 2 घंटे पहले ही खुल जाता है और निरंतर 11:00 बजे रात तक खुला रहता है.

 

महाकालेश्‍वर में निशुल्क खाने की उत्‍तम व्‍यवस्‍था

आप महाकालेश्‍वर अन्नक्षेत्र में आप निशुल्क भोजन कर सकते है। श्री महाकालेश्वर मंदिर समिति के द्वारा दोपहर 12 बजे से रात 9 बजे तक निशुल्क अन्नक्षेत्र का संचालन होता है। महाकालेश्‍वर अन्नक्षेत्र में प्रतिदिन करीब एक हजार से अधिक श्रद्धालु भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं। महाकाल मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भोजन व्यवस्था प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से की जाती है।

 

उज्जैन में घूमने की जगह

आप उज्जैन के कई प्रसिद्द मंदिरों का दर्शन कर सकते है। महाकाल मंदिर के पास कई बड़े मंदिर है। जिनका दर्शन पैदल जाकर ही कर सकते है। दूर स्थित मंदिर के दर्शन के लिए आपको महाकाल मंदिर के पास ही आपको आटो या टैक्सी मिल जाएगी, उज्जैन के इस मंदिरों का वर्णन हम नीचे दे रहे है।

 

Tourist Places In Ujjain In Hindi
श्री बड़े गणेशजी का मंदिर उज्जैन

 

बड़े गणेशजी का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के निकट ही स्थित है। यहां विश्व की सबसे ऊँची और विशाल गणेश जी की मूर्ति स्थापित की गई है। इस मूर्ति का निर्माण विख्यात विद्वान स्व. पं. नारायणजी व्यास ने किया था। लगभग ढाई वर्ष का समय इस प्रतिमा के निर्माण में लगा था। इस मूर्ति की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इस प्रतिमा को बनाने के मिश्रण में गुड़ व मैथीदाने का मसाला और सात मोक्षपुरियों मथुरा,  माया, अयोध्या, काँची, उज्जैन, काशी व द्वारिका की मिट्टी का उपयोग किया गया। साथ ही इस मूर्ति को बनाने में सभी पवित्र तीर्थ स्थलों का जल मिलाया गया था। इस मंदिर में अति मनभावन पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर के अन्दर नवग्रह मंदिर, भगवान श्री कृष्ण और माता यशोदा की प्रतिमाये विराजमान है। महिलाये बड़ा गणेश जी को अपने भाई के रूप में मानती है तथा रक्षा बंधन पर राखी बांधती है।

 

माता हरसिद्धि का प्राचीनतम मन्दिर

यहां के अति प्राचीन मंदिरों में से एक श्री हरसिद्धि माता का मंदिर है। यह मंदिर रुद्रसागर नामक तालाब के किनारे स्थित है। यह मंदिर देवी माँ के 51 शक्ति पीठो मे एक है। यहाँ सती माता की कोहनी गिरी थी। हरसिद्धिमाता की कथा का वर्णन – प्राचीनकाल के दो राक्षस चण्ड और मुण्ड ने तपस्या करके वरदान प्राप्त किया फिर अपने बल और पराक्रम का दुरपयोग करके पूरी धरती के प्राणियों को आतंकित करने लगे। एक बार ये दोनों कैलाश पर्वत पर गए। वहां पर भगवान शिव और माता पार्वती द्यूत-क्रीड़ा कर रहे थे। जब इन्होने अंदर प्रवेश करने की कोशिश की तो द्वार पर नंदीजी और अन्य शिवगण से उनका युद्ध हुआ। सभी को उन्होंने घायल कर दिया। तब शिवजी ने इस घटना को देखकर देवी चंडी का आहवान किया। देवी ने भगवान शंकर की आज्ञा लेकर दोनों राक्षसों का वध कर दिया। भोलेनाथ शंकरजी ने प्रसन्नता से कहा – हे चण्डी, तुमने इस दुष्टों का वध किया है अत: लोक-ख्याति में हरसिद्धि नाम प्रसिद्धि रहेगा। तभी से माता हरसिद्धि यहाँ उपस्थित हैं। मंदिर के अंदर देवीजी की मूर्ति है। जो अत्यंत मनमोहक तथा प्रसन्न मुद्रा में है। मंदिर में श्रीयंत्र बना हुआ है। इसी स्थान के पीछे माता अन्नपूर्णा की सुंदर प्रतिमा विराजमान है।

 

राम घाट उज्जैन

उज्जैन शहर के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में एक राम घाट महाकालेश्वर व हरसिद्धी मंदिर के पास शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ की मान्यता के अनुसार शिप्रा नदी भगवान विष्णु के शरीर से निकली है। यह घाट कुंभ स्नान के लिए भी प्रसिद्ध है। सिंहस्थ के समय आप हजारों लोगो को शिप्रा नदी में एक पवित्र डुबकी लेते हुए देख सकते हैं। इसमे स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ पर रोज़ शाम को शिप्रा की आरती होती है। आप आरती को अवश्य देखिये। यह एक अत्यंत विलक्षण दृश्य है, इसमें दीपक जलाया जाता है और घाट से आरती की जाती है।  राम घाट पर कई देवी -देवताओ के नए एवम पुराने मंदिर भी है। जिनमें से चित्रगुप्त का मंदिर सबसे अधिक पूजनीय है। भगवान श्रीराम ने क्षिप्रा नदी में ही अपने पिता दशरथ का पिंड दान किया था।

 

श्री चिंतामन गणेश मंदिर उज्जैन

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से लगभग 5.5 किलोमीटर दूर भगवान गणेश का अद्वितीय श्री चिंतामन गणेश मंदिर है। इस मंदिर की सदियों पुरानी पवित्रता आज तक संरक्षित है और  भक्तों की आस्था इसे और अधिक पवित्र बनाती है। चिंतामण गणेश मंदिर में कई कलात्मक नक्काशीदार स्तंभ है। इन सभी स्तम्भ को असेम्बली हॉल में रखा गया है। गर्भगृह में प्रवेश करते समय ऊपर अवश्य देखिये तो चिंतामण गणेश का एक अति सुन्दर श्लोक लिखा हुआ है…

कल्याणानां निधये विधये  संकल्पस्य कर्मजातस्य।

निधिपतये गणपतये चिन्तामण्ये नमस्कुर्म:।

मंदिर के गर्भगृह में गौरीपुत्र गणेश तीन रूपों में विराजमान हैं। पहला चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक। भगवान चिंतामण गणेश चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं, इच्छामन गणेश अपने भक्तों की कामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेश जी का सिद्धिविनायक स्वरूप भक्तों को सिद्धि प्रदान करता है। ये सामान्य मूतियाँ नहीं है। इन मूर्तियों को ‘स्वयंभू’ (स्वयं प्रकट) माना जाता है।

चिंतामन मंदिर की स्थापना की पौराणिक कथा आपको बताते है। त्रेतायुग में भगवान राम ने जब  वनवास में थे, तब एक बार माता सीता जी को बहुत प्यास लगी। तब लक्ष्मण जी ने अपने बड़े भैया श्री राम की आज्ञा पाकर अपने तीर इस स्थान पर मारा जिससे भूमि से जल की धारा निकली और यहां एक बावड़ी बन गई। तभी श्री राम ने अपनी दिव्यदृष्टि से पता चला कि यहाँ  की हवाएं दूषित है और इसे शुद्ध करने के लिए उन्होंने गणपति से अनुरोध कर उनकी उपासना की, पूजन के बाद सीता जी ने बावड़ी के जल को पी कर अपनी प्यास बुझाई। भगवान श्री राम ने ही इस चिंतामन मंदिर का निर्माण करवाया। आज भी आप लक्ष्मण बावड़ी यहां देख सकतें है।

 

महर्षि सांदीपनि आश्रम उज्जैन

शिक्षास्थली के रूप में उज्जयिनी नगरी नालन्दा और काशी के पहले से विद्यमान है। 6000 वर्ष पुराने सांदीपनि आश्रम की विशेषता यह है कि अत्याचारी कंस का वध करने के बाद सिर्फ 11 वर्ष की उम्र में भागवान श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने तपोनिष्ठ महर्षि सान्दीपनि से अस्त्र मंत्रोपनिषद, धनुर्विद्या, गज एवं अश्वरोहण इत्यादि चौंसठ कलाओं और 15 विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया था। भगवान श्री कृष्ण मात्र 64 दिनों में सम्पूर्ण शिक्षा में पारंगत हो गये थे। आप मंदिर के अन्दर प्रवेश करते है तो आपको भगवान श्री कृष्ण के हाथो में स्लेट और कलम लेकर बैठ कर विद्या अध्यन करते हुए दिखाई देते है। जबकि अन्य मंदिरों में उनके खड़े होकर बांसुरी बजाते हुए दर्शन होते है। यहाँ पर महर्षि सांदीपनि के चरण पादुका के दर्शन भी होते है। एक बार भगवान भोले नाथ भगवान श्री कृष्ण से मिलने पधारे तो गुरु सांदीपनि और श्री कृष्ण भगवान के सम्मान में नंदी जी खड़े हो गए इसी कारण यहाँ खड़े नंदी जी की दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन होते है, लेकिन बाकि मंदिरों में नंदी जी बैठे हुए दर्शन देते है। यहाँ पर एक कुंड भी है। इसमें गोमती नदी का जल रहता था, इसलिए गोमती कुंड कहा जाता है।

 

गढ़कालिका मंदिर उज्जैन

सांदीपनि आश्रम से 1 किलोमीटर की दुरी पर कालीघाट के निकट कालिका माता का अत्यंत प्राचीन गढ़कालिका मंदिर है। कलिका माता की यह प्रतिमा मंदिर सतयुग काल की है और  मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर माता के वाहन सिंह की प्रतिमा बनी हुई है। प्रवेश करने पर माँ के मुख के दर्शन होते है, माँ की लाल जिव्हा बाहर निकली हुई है। महाकवि कालिदास ने कठिन तपस्या करके माँ को प्रसन्न किया फिर माता गढ़कालिका ने उन्हें साक्षात् प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया था। देवी माँ के आशीर्वाद से ही कालिदास को कवित्व की प्रतिभा प्राप्त हुई थी।

 

मंगलनाथ मंदिर उज्जैन

पुराणों में उज्जैन को मंगल की जननी कहा जाता है। कई लोगों की कुंडली में मंगल भारी रहता है। वे मंगल ग्रह की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ करवाने आते हैं। मंगल ग्रह का रंग लाल है। यह मंदिर लाल पत्थरो से तैयार किया गया है। जब आप पहली बार आप जायेंगे तो आप मंदिर में मंगलनाथ को खोजते रह जायेंगे, पर मंगलनाथ की प्रतिमा भगवान शिव के शिवलिंग के रूप में प्रतिष्ठित है। हर मंगलवार को मंगलनाथ शिवलिंग पर भक्त अभिषेक और पूजन करते है।

 

कालभैरव मंदिर उज्जैन

सांदीपनि आश्रम से लगभग 1 किलोमीटर की दूर कालभैरव मंदिर स्थित है। पुराणों से  अनुसार कालभैरव का अष्टभैरवों में प्रमुख स्थान है। यहाँ पर भैरव भगवान पर मदिरा का प्रसाद  चढ़ाया जाता है। यह आपको मंदिर के बाहर फूल माला की दुकानों पर मिल जाएगी। आप मंदिर में दर्शन के प्रवेश करें वहां आपको कालभैरव भगवान की अत्यंत अदभुत और चमत्कारिक प्रतिमा के दर्शन होंगें। कालभैरव भगवान की प्रतिमा के मुख में छिद्र नहीं है, पर जब पंडित जी जैसे ही प्रतिमा के मुख में मद्य का पात्र लगाते है तो देखते ही देखते वह पात्र खाली हो जाता है। यह मदिरा कहां जाती है, ये रहस्य आज भी बना हुआ है। कालभैरव को मदिरा का प्रसाद  अर्पित करते समय हमारा यही भाव होना चाहिए कि हम हमारी समस्त बुराइयां भगवान को समर्पित करें और अच्छाई के मार्ग पर चलने का संकल्प करें। कहा जाता है, भगवान महाकाल ने ही कालभैरव को इस स्थान पर उज्जैन शहर की रक्षा के लिए नियुक्त किया है। इसलिए कालभैरव को शहर का कोतवाल भी कहा जाता है।

 

द्वारकाधीश गोपाल मंदिर उज्जैन

महाकालेश्वर मंदिर से 1 किलोमीटर की दुरी पर अत्यंत कलात्मक व भव्य गोपाल मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान द्वारकाधीश पटरानी रुक्मिणीजी के साथ विराजमान हैं। इस मंदिर में राधाजी, रुक्मिणी जी और भगवान गोपालकृष्ण की प्रतिदिन पूजा अर्चना होती है। श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में एक अनूठी परंपरा है। यहां (जन्माष्टमी) भगवान श्रीकृष्ण के जन्म  के बाद कन्हैया पांच दिनों तक सोते नहीं हैं। मंदिर में रोज रात्रि होने वाली शयन आरती भी  पांच दिनों तक नहीं होती है।

 

नारायण धाम मंदिर उज्जैन

भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता का प्रतीक नारायण धाम मंदिर उज्जैन से 35 किलोमीटर की दूरी पर महिदपुर तहसील के नारायणा ग्राम में स्थित है। सांदीपनि आश्रम में एक बार गुरुमाता के कहने पर भगवान श्रीकृष्ण मित्र सुदामा के साथ वन में लकड़ियां लेने गए थे। लौटने में तेज बारिश के कारण अधिक समय लग गया और उन्हें रात को जंगल में रुकना पड़ा। तब इसी स्थान पर सुदामा ने भगवान श्रीकृष्ण से छुपाकर चने खाए थे। हर साल भक्त यहां मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। आपको यहाँ भगवान श्री यहाँ कृष्ण और सुदामा जी की मित्रता के अद्भुद पल याद आ जायेंगे।

यहाँ भगवान कृष्ण और उनके सखा सुदामा की 5 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है और मंदिर के भीतर श्री कृष्ण और सुदामा जी के आकर्षक चित्र भी लगाए गए हैं। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण व सुदामाजी की दिव्य मूर्तियां स्थापित हैं। जन्माष्टमी के महापर्व पर मंदिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है।

 

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